जब बात बॉलीवुड के असली दिग्गजों की होती है—ऐसे सितारे जिन्होंने सिर्फ अभिनय नहीं किया, बल्कि एक पूरा युग परिभाषित किया—तो दो नाम सबसे ऊपर आते हैं: राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन। ये दोनों सिर्फ सितारे नहीं थे, बल्कि वे समय के प्रतीक बन चुके थे, जिनकी स्टाइल, शख्सियत और फिल्में आज भी लोगों के दिलों में ज़िंदा हैं।
💫 राजेश खन्ना: रोमांस का राजा
1960 और 70 के दशक की बात करें, तो राजेश खन्ना को बॉलीवुड का पहला सुपरस्टार कहा गया। उनका चार्म ऐसा था कि लड़कियां खून से खत लिखती थीं, उनकी कार पर लिपस्टिक से किस के निशान होते थे, और सिनेमाघरों में सिर झुकाने भर से सीटियां गूंज जाती थीं।
हिट फिल्मों की झड़ी:
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आराधना
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आनंद
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कटी पतंग
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हाथी मेरे साथी
उन्होंने लगातार 15 सुपरहिट सोलो फिल्में दीं—एक ऐसा रिकॉर्ड जो आज भी कायम है। उनका रोमांटिक अंदाज़, भावुक आंखें और दिल छू लेने वाले गाने आज भी उसी तरह असर डालते हैं।
⚡ अमिताभ बच्चन: क्रांति की आवाज़
जब देश बदल रहा था, तब स्क्रीन पर उभरे अमिताभ बच्चन—बॉलीवुड के एंग्री यंग मैन।
यह दौर रोमांस से विद्रोह का था। उनकी भारी आवाज़, गंभीर आंखें और क्रोध से भरे डायलॉग्स दर्शकों के दिलों पर छा गए।
क्रांतिकारी फिल्में:
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ज़ंजीर
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दीवार
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शोले
इन फिल्मों ने न सिर्फ बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचाया बल्कि पूरे समाज की सोच को झकझोर दिया। वे उस आम आदमी की आवाज़ बन गए जो व्यवस्था से तंग आ चुका था।
🎬 छात्र से गुरु तक की कहानी
शुरुआत में अमिताभ बच्चन ने राजेश खन्ना के साथ आनंद और नमक हराम जैसी फिल्मों में सह-कलाकार की भूमिका निभाई। लेकिन जल्द ही उन्होंने अपने अंदाज़ से खुद को स्थापित कर लिया और 70 के दशक के अंत तक बॉक्स ऑफिस पर राज करने लगे।
फिर आया उनका दूसरा दौर—2000 के बाद का ज़माना, जहां उन्होंने ब्लैक, पा, पिंक जैसी फिल्मों से फिर से साबित किया कि वे कालजयी हैं। और फिर कौन बनेगा करोड़पति ने उन्हें टीवी का भी बादशाह बना दिया।
🧠 दो युग, दो दृष्टिकोण
पहलू | राजेश खन्ना | अमिताभ बच्चन |
---|---|---|
व्यक्तित्व | रोमांटिक, भावुक, चार्मिंग | गंभीर, क्रांतिकारी, दमदार |
प्रतीक | सपनों और प्यार की पीढ़ी | बदलाव और संघर्ष की पीढ़ी |
शुरुआती दौर | 1969–1974 (सुपरस्टार फेज) | 1975–1990 (एंग्री यंग मैन फेज) |
दूसरी पारी | सीमित और भावुक किरदारों में | फिल्मों + टीवी में जबरदस्त कमबैक |
आइकॉनिक डायलॉग | “बाबू मोशाय, ज़िंदगी बड़ी होनी चाहिए” | “मैं आज भी फेंके हुए पैसे नहीं उठाता” |
🤝 सम्मान, प्रतिद्वंद्विता नहीं
मीडिया हमेशा इन दोनों के बीच तुलना करता रहा, लेकिन दोनों के बीच एक गहरा परोक्ष सम्मान था। कोई सार्वजनिक बयानबाज़ी नहीं, बस एक-दूसरे की कला को दूर से नमन।
📌 निष्कर्ष
राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन का मुकाबला करना सूरज और चाँद की तुलना जैसा है। एक ने सपनों को सजाया, तो दूसरे ने हकीकत को आवाज़ दी। आज भी जब भारतीय सिनेमा की बात होती है, ये दोनों नाम सबसे पहले आते हैं।
डिस्क्लेमर: यह लेख बॉलीवुड इतिहास और पब्लिक डोमेन में उपलब्ध जानकारियों पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल मनोरंजन और सिनेमा प्रेमियों को जानकारी देना है, न कि किसी की तुलना या आलोचना करना।
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